"अनन्त और अवर्णनीय उस अनोखा पवित्र प्रेम में कवि एवम् कविता अपूर्ण है, क्योंकि परमेश्वर प्रेम है ॥"
प्रेम
प्रेम कीजिए मत, प्रेम को अपनी फितरत बनाइए
प्रेम लीजिये मत, उसे अपना हक बनाइए
प्रेम भूलिये मत, सारे हिसाब भूल जाइए
प्रेम में ठहरिए मत, साथ चलते चले जाइए
प्रेम को ढूंढिए मत, उसे पा लीजिये
हरदम यहाँ वहाँ उस से मुलाकात कीजिये
खडा़ है आपके द्वार, उसे पहचान लीजिए
बडे़ आदर से उने मन में जगह दीजिये ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
हरिलाल जी
सुन्दर रचना है.....प्यार के इर्द गिर्द खूबसूरती से बुना है आपने इसे.........
Sachmuch prem ko firtat hi nahi.........jindagi banaana chahiye
A new vision towards love, fantastic
Keep it up
Post a Comment